स्वास्तिक के साथ क्यों लिखते हैं शुभ-लाभ?

ज्‍योतिष

गजानन की दो पत्नियां हैं रिद्धि और सिद्धि. गणेश जी को रिद्धि से क्षेम और सिद्धि से लाभ नाम के दो पुत्र हैं. जब कार्तिकेय दक्षिण में असुरों से संग्राम के लिए गए थे और उन्होंने युद्ध में असुरों को पराजित कर दिया था, तब भगवान शिव ने गणेश जी के पुत्र का नाम क्षेम रखा. माता पार्वती उनको प्रेम से लाभ नाम से पुकारती थीं. इस तरह से गणेश जी के दो पुत्रों का नाम शुभ और लाभ हुआ.

स्वास्तिक के साथ क्यों लिखते हैं शुभ-लाभ?
स्वास्तिक के साथ क्यों लिखते हैं शुभ-लाभ?

देवों के देव महादेव के दूसरे पुत्र श्री गणेश जी देवताओं में प्रथम पूज्य हैं. किसी भी कार्य के प्रारंभ से पूर्व उनकी पूजा अनिवार्य है. ऐसा करने से वह कार्य बिना किसी विघ्न और बाधा के पूर्ण हो जाता है. भगवान गणेश शुभता, बुद्धि और ज्ञान के देवता हैं. उनके भाई कार्तिकेय और बहन अशोक सुंदरी हैं.

दिवाली, धार्मिक कार्यक्रम या पूजा पाठ के दौरान पूजा घर या मुख्य दरवाजे के पास हम स्वास्तिक बनाते हैं और उसके बगल में शुभ-लाभ लिखते हैं. ऐसा करने के पीछे एक पौराणिक मत है. हिंदू पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, भगवान गणेश ‘बुद्धि के देवता’ हैं, ऐसे में ‘स्वास्तिक’ बुद्धि का पवित्र प्रतीक है. स्वास्तिक की दोनों अलग-अलग रेखाएं गजानन जी की पत्नी रिद्धि-सिद्धि को दर्शाती हैं. गणेशजी के पुत्रों के नाम हम ‘स्वास्तिक’ के दाएं-बाएं लिखते हैं.

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